डाक घर की दशा सुधाइये सरकार.....!!!

रिपोर्ट---गोपाल सिंह 

 



 

सरकार ने सरकारी तंत्र को ज़िम्मेदारियाँ तो बहुत दी लेकिन वहां की दशा सुधारने के लिए ज़रा भी ज़हमत नही उठाई आपको मेरी बात का यकीन तब होगा जब आप डाकघर जा कर अपना कोई भी काम करवाएंगे तब।आज कल तो रक्षाबंधन का समय है जिसमे बहने अपने दूर दराज रह रहे भाइयों को डाक द्वारा राखी भेजती हैं सरकार कहती तो है कि डाकघर में इसकी अलग से व्यवस्था की गई है लेकिन वहां की जमीनी हकीकत आपको रुला ही देती है और थक हार के बहाने कुरियर वाले का रुख करने को मजबूर हो जाती हैं।

 


 


 

आपको आज का वाक्या बताता हूँ चौक डाकघर का जहां मैँ भी स्पीड पोस्ट कराने गया था सुबह तक़रीबन 11 बजे जो में वहां पहुंचा उसके बाद तक़रीबन 3 बजे मेरा नम्बर लगा जिसका कारण था पहला कि काउंटर पर बैठा सरकारी मुलाज़िम बेहद सुस्त तरीके से लोगो की डाक ले रहा था और दूसरा भारी भीड़ के बावजूद सिर्फ दो काउंटरों से स्पीड पोस्ट और रजिस्ट्री की सुविधा दी जा रही थी,और तीसरा वो ये के डाकघर को सरकार ने ज़िम्मेदारी छमता से अधिक दे दी है।

 


 


 


हमारे सामने ही कितने लोग लम्बी लाइन में खड़े खड़े पसीना पोछते नज़र आ रहे थे जैसे ही मेरा नम्बर आया कर्मचारी ने मेरे आगे खड़े व्यक्ति का पोस्ट लिया और कहा अब लंच हो गया आप खड़े रहिये दो बजे लौटूंगा उनकी ये बात सुनकर सभी को निराशा हुई लोगों ने कहा कि भीड़ और को देखते हुए कोई एक्सट्रा सुविधा क्यों नही दी जा रही समझ मे नही आ रहा।


 


 

ना डाकघर में लोगो के लिए पानी की सुविधा ना ही उनको सही जानकारी देने का कोई काउंटर ही था वहां दो काउंटर आधार कार्ड के और दो स्पीड पोस्ट और रजिस्ट्री के बाकी 10 काउंटर वाले ना जाने क्या करते हैं लोगो को इतनी तकलीफ होती है ये बड़े साहब क्यों नही समझते है सरकार भी केवल डाकघर में हर सरकारी योजना को भेज देती है पर उसका क्रियान्वयन कैसे होगा इसपर कोई काम नही करती है जिसका खामियाजा आम पब्लिक उठाती है।ऐसे में सरकारी संस्था को कैसे फायदा होगा ये नही समझ आता क्या सरकार ही चाहती है कि यहां सब ऐसा ही रहे या कोई और वजह है डाकघर जैसी सरकारी संस्था के दुर्दशा की।