महिलाओं ने बरगद की पूजा कर मनाया वटसावित्री पर्व...... 
खास रिपोर्ट---रज़िया बानो खान 

 


 

वटसावित्री की पूजा हिन्दू समाज में विशेषकर सुहागिनों के लिए होती है जो अपने पति की दीर्घ आयु की कामना के साथ इस पूजा को करती हैं।इस दिन महिलाओं का श्रंगार भी देखने योग्य होता है और तो और कई महिलाएं तो इस दिन व्रत भी रखती हैं।इससे जुड़ी एक प्रचलित कहानी से आपको परिचित कराते हैं।बहुत पहले की बात है अश्‍वपति नाम का एक सच्चा ईमानदार राजा था। उसकी सावित्री नाम की बेटी थी। जब सावित्री शादी के योग्‍य हुई तो उसकी मुलाकात सत्‍यवान से हुई और परिवार के बड़े बुजुर्गो ने आपसी सहमति से दोनों का बड़ी धूम धाम से विवाह कर दिया।दोनों के विवाह उपरांत ये पता चला कि सत्‍यवान की कुंडली में सिर्फ एक वर्ष का ही जीवन शेष था।यह जानकर दोनों परिवारों के लोग काफी दुखी हुए और इसे विधि का विधान मान लिया।

 


 

ये बात जान कर भी सावित्री विचलित नहीं हुई और अपने पति के साथ सामान्य जीवन व्यतीत करने के साथ ही ईश्वर की पूजा पाठ में ज्यादा समय देने लगी। ऐसे ही दिन गुजरने लगे,....एक दिन की बात है सावित्री अपने पति के साथ बरगद के पेड़ के नीचे बैठी थी।सावित्री का पति सत्‍यवान उसकी गोद में सिर रखकर लेटे हुआ था।तभी उसके प्राण लेने के लिये यमलोक से यमराज के दूत आये पर सावित्री ने अपने पति के प्राण नहीं ले जाने दिये यमदुतो के काफी बार कहने और मिन्नत करने के बाद भी सावित्री अपनी बात पर अटल रही और यमदूतो को अपने पति के प्राण नहीं ले जाने दिये।जिसके बाद यमदूत वापस चले गये और यमराज को जाकर ये बात बतायी ये बात सुनकर यमराज खुद सत्‍यवान के प्राण लेने के लिए आते हैं। 

 


 

यमराज को सामने देखकर भी सावित्री बिलकुल घबराई नहीं और अपने पति के प्राण बचाने के लिए यमराज से भी भिड़ गजाती है पर वो उसके प्राण हर चल देते है।पर उनके पीछे चल देते है सावित्री के न मैंने पर यमराज उसे वरदान मांगने को कहते हैं। सावित्री वरदान में अपने सास-ससुर की सुख शांति मांगती है। यमराज उसे दे देते हैं पर फिर भी सावित्री यमराज का पीछा नहीं छोड़ती है। यमराज फिर से उसे वरदान मांगने को कहते हैं। सावित्री अपने माता पिता की सुख समृद्धि मांगती है। यमराज तथास्‍तु बोल कर आगे बढ़ते हैं पर सावित्री फिर भी उनका पीछा नहीं छोड़ती है। यमराज उसे आखिरी वरदान मांगने को कहते हैं तो सावित्री वरदान में एक पुत्र मांगती है यमराज तथास्तु बोलकर आगे बढ़ जाते है।तो सावित्री कहती हैं कि पति के बिना मैं कैसे पुत्र प्राप्ति कर स‍कती हूं। इस पर यमराज उसकी लगन, बुद्धिमत्‍ता देखकर प्रसन्‍न हो जाते हैं और उसके पति के प्राण वापस कर देते हैं।  

 


 

बस तभी से सावित्री को सती सावित्री  लगा और इसे वटसावित्री पूजा के रूप में मनाया जाने लगा,..... इस पूजा में कच्चे आम व अन्य फलों के साथ साथ हाथ वाला पंखा और कच्चे धागे का भी बड़ा महत्व होता है उसी धागे को महिलाएं बरगद के पेड पर बंधती है और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है।