पेड न्यूज या पेड ख़बर का सच......???

खास रिपोर्ट--- रज़िया बानो खान......



आम तौर पर माना ये जाता है कि हमको अखबार या न्यूज़ चैनल जो खबर दिखाते या बताते है वो वास्तव में सही और सटीक खबर होती है लेकिन आजकल एक नया ट्रेंड भी इसमें जुड़ गया है जिसे हमारी बोलचाल की भाषा मे पेड न्यूज कहा जाता है और ये भाषा हर वो व्यक्ति जानता है जिसे अपने को साबित करने के लिए इसका सहारा लेना पड़ता है।खबर और पेड न्यूज में जो अंतर है वो ये के खबर को छुपाया नही जा सकता वो हर कीमत पर मीडिया तक खुद पहुंच जाती है जबकि पेड न्यूज खुद बनवा के किसी जुगाड़ से चलवाई जाती है ऐसा वही शख्स करता है जो भीड़ में रहने के बाद हताश हो जाता है और वो ये चाहता है कि लोग भी उसको पहचाने उसकी पहचान बनाने का साधन ही पेड न्यूज कहलाता है।

 

यहां इसका एक दूसरा प्रमुख कारण ये भी है कि पेड न्यूज से एक तो खबर की खबर संस्थान को मिल जाती है और बदले में उस न्यूज़ को बनाने वाले को तुरंत उसका पारिश्रमिक भी प्राप्त हो जाता है वैसे आजकल देखा जाए तो खबर से ज़्यादा पेड खबर ही लोगों तक पहुंचाई जा रही है फिर चाहे उसका कारण किसी का डर हो या खुद का फायदा।पेड न्यूज जैसा की नाम से ही मालूम पड़ रहा है कि ये न्यूज़ तभी बनेगी जब इसका पेमेंट किया गया होगा और ये अक्सर नए पुराने नेता,व्यापारियों या खुद को फेमस किये जाने की लालसा करने वाले लोग अधिक इस्तेमाल करते हैं।

 

सीधे और सरल शब्दों में कहा जाए तो खबर वो होती है जो अचानक हो और पेड न्यूज उसे कहते हैं जिसकी बकायदा स्क्रिप्ट तैयार की गई हो जिसमें पहले से बता दिया जाए कि आपको ऐसे करना है ऐसे बोलना है और इतना ही कहना है अगर बात ना सुनी तो न्यूज़ लग नही पाएगी।मीडिया में पेड न्यूज दिखाने की एक और मजबूत वजह ये भी है कि यहां काम करने वाले फील्ड रिपोर्टरों को उनका उतना मेहनताना नही मिल पाता जिसके वो हक़दार हैं इस लिए ऐसी पेड न्यूज उनके लिए भी उनकी जरूरत का एक हिस्सा बन चुकी है और ये बात ऊपर से ले कर नीचे तक सभी को ज्ञात है।

 

सब ये भी जानते हैं कि पेड न्यूज़ के लिए सिर्फ फील्ड रिपोर्टर को ही कुछ देने से कोई लाभ नही होगा इसलिए वो लोग बकायदा संस्थान के बड़े बड़े लोगों से पहुंच बना कर अपना काम निकलवा लेते हैं बेचारा फील्ड रिपोर्टर तो संस्थान में बंध कर उनकी जी हजूरी करने में ही अपनी भलाई सोचता है और थोड़े में ही काम चला लेता है असली मलाई तो बड़े लोग हजम कर लेते हैं और किसी को पता तक नही चलता देखने वाला तो यही सोचता है कि खबर बड़ी सालिड है पर उसको क्या पता के यहाँ भी पैसे का खेल है ये वही देख रहे हैं जो इनको पेड न्यूज बनवाने वाला दिखाना चाहता है इसी लिए ये बात कहने में हम ज़रा भी गुरेज नही करेंगे कि आज के समय मे मीडिया भी खरीदी जा सकती है और खरीदी जा रही है जिसका मुख्य कारण किसी को पैसा और किसी को रातों रात शोहरत पाने का है।अपने मतलब के लिए ये लोग ये भी नही देखते के उनकी इस पेड़ न्यूज़ का जनता पर क्या असर होगा उनको तो बस दाम के बदले काम कर के देना होता है यही एक कटु सत्य है खबर और पेड न्यूज का।