नये दौर की ये कैसी राजनीति जहाँ चुनावी जन सभाओं में जनता की समस्याओं को ही किया जा रहा है नज़र अंदाज़...
2019 के चुनावी रैली पर विशेष लेख....... रज़िया बानो खान 

 

जहाँ आज पहले के चुनावों में और आज के चुनावों में खासा फर्क आ गया है सत्ता की चाहत नेताओ पर हावी होने लगी है और जनता की फिक्र उनके भाषणों से लुप्त हो गई है।ऐसा जनता को भी लगता होगा जब वो किसी नेता जी की चुनावी जन सभा मे जाती होगी या टेलीविज़न पर उनके वक्तव्यो को सुनती होगी।

 

जैसा कि हाल फिलहाल हो रहे लोक सभा चुनाव में नेताओ द्वारा ताबड़तोड़ रैलियां हो रही हैं।  सभी जगह लोगों की भारी भीड़ भी जुट रही है। भीड़ देख के अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो जाता है कि ये खुद आये हैं या बुलाये गए है। बात चाहे जो हो पर भीड़ गज़ब की होती है लेकिन उस भरी सभा मे नेताओ का जो भाषण होता है उसमें उनका कोई ज़िक्र नही होता भाषणों में बात होती है तो बस उस पार्टी ने क्या कहा क्या किया इसकी या ये जो कर के दिखाएंगे वो नही कर सकता नेता यहीं नही रुकते अब तो चुनावी हमले जाति से लेकर नेताओ के चरित्र पर आ गए हैं सभी एक दूसरे को गलत ठहराने का भरपूर प्रयास करते नज़र आ रहे हैं।

 

अब सवाल यही है कि ऐसी जनसभाओ से जनता को क्या मिलने वाला है।जनता इस बात में रुचि नही लेती के आपने दूसरे को कितना कोसा बल्कि जनता तो इस बात की प्रतीक्षा में रहती है कि आप उसके लिए क्या करने वाले हैं।क्या सिर्फ चुनावी घोषणा पत्र जारी कर के ही आप नेता वाला धर्म निभा लेते हैं...,अगर आपकी ऐसी ही सोच बन गई है तो हमे ये कहने में जरा भी गुरेज नही की आजकल की राजनीति सिर्फ और सिर्फ सत्ता की भूखी है।वो भी जनता को भुलाकर जनता से तो वोट चाहती है पर अपने भाषणों में उनके भलाई के मुद्दों का कहीं ज़िक्र तक नही होता।अब आप जनता जनार्दन खुद ही तय करे के हम इन नेताओ को सत्ता सौपने के बाद उनकी नज़र या घोषणा पत्र के मुताबिक कहाँ खड़े है।